नई दिल्ली. राजस्थान के जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने जाटलैंड और राजस्थान की राजनीति को तो बड़ा संदेश दिया ही है, लेकिन उसकी रणनीति अगले 25-30 साल की भावी राजनीति से जुड़ी हुई है। इसमें वह कॉडर से बाहर के विभिन्न सामाजिक वर्गों से जुड़े नेताओं को साथ जोड़ कर अपना व्यापक विस्तार कर लंबे समय तक सत्ता में रहना चाहती है।
धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से राज्यसभा में तो भाजपा को एक वरिष्ठ नेता बतौर सभापति मिलेगा ही, लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर उसे अगले साल होने वाले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी मदद मिलेगी। राजस्थान के शेखावटी के झुंझुनूं के जाट बहुल क्षेत्र से आने वाले धनखड़ से पार्टी को राज्य के सामाजिक समीकरणों में काफी मदद मिलेगी। अभी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी जाट समुदाय से आते हैं। राजस्थान की राजनीति में चार समुदाय जाट, गुर्जर, राजपूत और मीणा काफी अहमियत रखते हैं। इसके अलावा पिछड़े व दलित भी समीकरणों को बनाते-बिगाड़ते हैं। चूंकि, कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उसके दूसरे नंबर के नेता सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से हैं, ऐसे में भाजपा का भावी समीकरण जाट, मीणा और राजपूत के साथ अन्य वर्गों को जोड़ने पर टिका हुआ है।
देश में कांग्रेस की इस समय राजस्थान व छत्तीसगढ़ में सरकारें हैं। रणनीति व अनुभव के चलते गहलोत को ज्यादा मजबूत माना जाता है। ऐसे में भाजपा के लिए राजस्थान की चुनौती ज्यादा बड़ी है। धनखड़ के कद को बढ़ाने से भाजपा को राजस्थान में वसुंधरा राजे पर भी लगाम कसने का मौका मिलेगा। भाजपा काफी समय से राजे के आभामंडल से बाहर होने की कोशिश कर रही है।
इसके लिए उसने गजेंद्र सिंह शेखावत और उसके बाद सतीश पूनिया को मोर्चे पर उतारा। लेकिन उससे भी जमीनी समीकरण ज्यादा नहीं बदले। अब वह सामाजिक समीकरण बदल कर अपने हिसाब से भविष्य के नेतृत्व को तैयार करना चाहता है, जिसमें वसुंधरा का वर्चस्व न हो।
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