Breaking

19 July 2022

प्रदेश में तीसरे विकल्प से बुलंद होगी जन-आवाज

 मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव में आम आदमी पार्टी की सम्मानजनक एंट्री हुई है। सिंगरौली में महापौर पद आप के खाते में गया है। कुछ जगहों पर पार्षद पद पर भी आप ने जीत दर्ज की है। आप ने इन चुनावों में उम्मीद से ज्यादा सफलता पाई है..!



अभी तक जिन 11 नगर निगमों के परिणाम आए हैं उनमें भाजपा 7 सीटों के साथ सबसे आगे है। कांग्रेस तीन और आम आदमी पार्टी एक महापौर बनाने में सफल हुई है। आंकड़ों की दृष्टि से भाजपा पहले नंबर पर है लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले उसने चार नगर निगम गँवा दिए हैं। 


प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चल रहे राज में आप का आगाज प्रदेश की राजनीति में तीसरी ताकत की जरूरत को पूरा कर रहा है। भाजपा और कांग्रेस की वर्तमान व्यवस्था से राजनीतिक एकाधिकार का आभास होने लगा था। आप की प्रदेश में उपस्थिति जनता को तीसरा विकल्प उपलब्ध करा सकती है। साथ ही पब्लिक की विकास और व्यवस्था विरोधी आवाज को बुलंद होने का भी मौका मिलेगा। 


अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने शासन व्यवस्था का दिल्ली में जो मॉडल प्रस्तुत किया, धीरे-धीरे उसकी बात पूरे देश में होने लगी है। प्रचंड बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने वाली भाजपा भी राजधानी दिल्ली में आप को कमजोर करने में अभी तक सफल नहीं हो पाई है। इसके विपरीत आप ने पंजाब में सरकार बनाने में सफलता हासिल की है।  


मध्यप्रदेश में लंबे समय से भाजपा सरकार चला रही है। कामकाज की दृष्टि से भाजपा का परफॉर्मेंस बेहतर ही माना जाता है। इसके बाद भी राजनीतिक एकाधिकार के कारण लोकतंत्र की कई बुराइयां पनप ही जाती हैं। मध्यप्रदेश को काफी समय से विकल्प के रूप में तीसरे दल की तलाश थी।


पहले बसपा ने विकल्प के रूप में अपना स्थान बनाया था लेकिन धीरे-धीरे बसपा बिखर गई। उमा भारती की 'भारतीय जनशक्ति पार्टी' से तीसरे विकल्प की उम्मीद जगी थी लेकिन वह भी बहुत कम समय में ही फिर भाजपा में विलीन हो गई। 


मध्यप्रदेश की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती रही है। प्रदेश के गठन के बाद से 2003 तक कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में लंबे समय तक राज किया। 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने अपना वर्चस्व स्थापित किया। उसके बाद तो शुरुआती झटकों के बाद वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अंगद जैसा पांव जमा दिया।


साल 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद बनी कांग्रेस सरकार बगावत के कारण चली गई और शिवराज सिंह चौहान फ़िर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गए। अब प्रदेश के लोग शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में देखने के आदी से हो गए और शिवराज भी इतनी लंबी अवधि की सफलता से आदतन मुख्यमंत्री बन गए। 


आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में होना है। नगरीय निकाय के चुनावों को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। आंकड़ों का विश्लेषण करने पर स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा ने इस सेमीफाइनल को जीत लिया है लेकिन अब तक आए परिणामों के जो संदेश हैं वह तो भाजपा के पक्ष में नहीं माने जा रहे हैं क्योंकि 11 में से चार नगर निगम खोना पार्टी के लिए बड़ा सियासी सबक हो सकता है। हालांकि भाजपा ने अधिकांश नगरपालिकाओं और पार्षद पदों पर कब्जा किया है।


भाजपा ने महापौर का चुनाव सीधे जनता से कराने का निर्णय इसी उद्देश्य के साथ लिया था कि शहरों में उसके जनाधार के कारण उनका महापौर प्रत्याशी निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करेगा। कमलनाथ ने अपने कार्यकाल में महापौर के निर्वाचन की अप्रत्यक्ष प्रणाली पर जोर दिया था, अगर वह व्यवस्था कारगर हुई होती तो इस चुनाव में भी कांग्रेस संभवतः शून्य पर ही रहती लेकिन प्रत्यक्ष चुनाव के कारण कांग्रेस जो पिछले चुनाव में शून्य पर थी उसने तीन नगर-निगमों पर कब्जा कर लिया है।


यही स्थिति भाजपा की भी है अगर अप्रत्यक्ष चुनाव होते तो अब तक घोषित सभी 11 नतीजे भाजपा के पक्ष में होते। अभी 5 नगर निगमों के परिणाम आने हैं। पूरी पिक्चर तो उसके बाद ही स्पष्ट होगी लेकिन यह नतीजे कांग्रेस को उत्साहित करने वाले माने जा सकते हैं।  

 

नगरीय निकाय चुनाव परिणाम का अलग-अलग ढंग से विश्लेषण किया जा रहा है। कोई महापौर की जीत को उपलब्धि बता रहा है तो कोई पार्षदों की संख्या को अपनी जीत बता रहा है। चुनाव में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच माना जा रहा था लेकिन आम आदमी पार्टी में इन चुनावों में उलटफेर किया है जिसे प्रदेश के लिए सबसे बड़ा संदेश माना जा सकता है।


ओवैसी की पार्टी ने भी इन चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारे थे। कुछ जगहों पर ओवैसी के उम्मीदवार पार्षद पद पर जीते भी हैं लेकिन आप का मध्यप्रदेश की राजनीति में इन चुनावों के जरिए प्रवेश निश्चित रूप से तीसरे दल की भूमिका को मजबूत करेगा। इसका लाभ या नुकसान किस पार्टी को होगा, इसका कोई स्पष्ट फॉर्मूला नहीं है।


दिल्ली और पंजाब दोनों राज्यों में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से हटाकर अपनी सरकार बनाई है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी को ज्यादा स्वीकार किया जा रहा है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उनका जनाधार हिंदुत्व की राजनीति पर निर्भर है। इस जनाधार को कमजोर करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए फिलहाल मुमकिन नहीं लगता है। 


यह निश्चित है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में आप का ताप दिखाई पड़ेगा। यह कितना होगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि आप अपने संगठन को किस तरह से प्रदेश में आकार देती है। ऐसा माना जा रहा है कि एक बड़े रिटायर्ड आईएएस भी आप ज्वाइन करने जा रहे हैं। आप की मौजूदगी से दोनों दलों को प्रत्याशी चयन में भी बहुत अधिक सतर्क रहने की चुनौती रहेगी।


भाजपा और कांग्रेस यदि प्रत्याशियों के चयन में बंदरबाट करेंगी तो फिर अनेक प्रत्याशी जो टिकट से वंचित होंगे वो आप में जाकर अपना भाग्य आजमा सकते हैं। दोनों पार्टियों के बागी और उपेक्षित नेताओं के लिए आप पार्टी एक अवसर के रूप में हो सकती है। साथ ही आम आदमी पार्टी प्रदेश में एक नए राजनीतिक नेतृत्व को भी जन्म दे सकती है।

No comments:

Post a Comment

Pages