मुकुल रोहतगी ने देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी अटॉर्नी जनरल का पद ठुकरा दिया है। यह हैरानी की बात है क्योंकि उन्होंने पहले अटॉर्नी जनरल बनने की हामी भर दी थी। वे नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले अटॉर्नी जनरल रहे हैं। उनको 2014 में एजी बनाया गया था और तीन साल के कार्यकाल के बाद वे 2017 में रिटायर हुए। उनके दोस्त और साथी वकील अरुण जेटली ने तब उनको अटॉर्नी जनरल बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। अब पिछले पांच साल से केके वेणुगोपाल देश की महाधिवक्ता हैं। तीन साल के कार्यकाल के बाद उनको एक-एक साल का दो विस्तार मिला और फिर तीन महीने का विस्तार मिला, जो 30 सितंबर को समाप्त हो रहा है।
उस दिन मुकुल रोहतगी को फिर से अटॉर्नी जनरल बनना था लेकिन रविवार को उन्होंने बताया कि उनका मन बदल गया है और अब वे अटॉर्नी जनरल नहीं बनेंगे। ध्यान रहे इससे पहले केंद्र सरकार हरीश साल्वे को अटॉर्नी जनरल बनाने का प्रयास कर चुकी है। उनके लिए सरकार ने एक साल से ज्यादा समय तक इंतजार किया है। लेकिन वे तैयार नहीं हुए तब रोहतगी को फिर मौका देने का फैसला हुआ। पर अब वे भी पीछे हट गए हैं। तभी सवाल है कि क्या देश के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता नए अटॉर्नी जनरल होंगे? उनका गुजरात का होना उनके रास्ते में बाधा है। पहले ही देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री गुजरात से हैं। यह भी सवाल है कि क्या फिर से साल्वे से बात होगी? क्या कुछ दिन और सेवा विस्तार वेणुगोपाल को मिलेगा?
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