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26 March 2023

मुगल भी खोज नहीं पाए थे मां की प्रतिमा


 भिंड।
जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर पर मां करोली की छोटी बहन के रूप में पूज्‍यनीय माता की प्रतिमा खंडित करने आए मुगल भी इसे देखकर चकित रह गए थे। मुगल आततायियों ने पूरा मंदिर छान मारा था, लेकिन माता की प्रतिमा नहीं मिली थी। कहा जाता है कि माता रानी ने कुएं में छलांग लगा दी थी। बाद में जब पुजारी को भविष्‍यवाणी हुई तब कुएं से प्रतिमा को बाहर निकाला गया था।

 भिंड मध्य प्रदेश के भिंड जिला स्थित पावई माता मंदिर का इतिहास कई रहस्‍यों से भरा है। बीहड़ों के बीच बसा यह क्षेत्र ग्यारहवीं सदी से अस्तित्‍व में आया। गुर्जर प्रतिहार राजाओं के वंशजों ने तब यहां पावई वाली माता के मंदिर की स्‍थापना की थी। मां करोली की छोटी बहन के रूप में पूज्‍यनीय माता की प्रतिमा खंडित करने आए मुगल भी इसे देखकर चकित रह गए थे। मुगल आततायियों ने पूरा मंदिर छान मारा था, लेकिन माता की प्रतिमा नहीं मिली थी। कहा जाता है कि माता रानी ने कुएं में छलांग लगा दी थी, बाद में जब पुजारी को भविष्‍यवाणी हुई तब कुएं से प्रतिमा को बाहर निकाला गया था। यज्ञाचार्य पंडित शास्‍त्री बताते हैं कि जमींदारी का समय था, उस समय एक ग्‍वाला जंगल में गायों को चराने जाता था। गाय चराकर जब वो वापस आता तो उसकी काली गाय शाम को दूध नहीं देती थी, जबकि सुबह पूरा दूध देती थी। ग्वाले को चिंता हुई कि काली गाय का दूध आखिर शाम को जाता कहां है। ग्‍वाला ने एक दिन गाय का पीछा किया, तो देखा कि काली गाय जंगल में एक बामी के ऊपर पैर फैलाकर खड़ी हो गई। उसका सारा दूध बामी में चला गया. ग्‍वाला यह दृश्‍य देखकर आश्‍चर्यच‍कित रह गया और उसने लौटकर गांववालों को पूरी घटना बताई। तब गणमान्‍य व्‍यक्तियों ने निर्णय लिया कि जमीन के अंदर खुदाई की जाए, ताकि पता चले कि आखिर यह क्या राज है। ग्रामीणों ने बामी को खोदना शुरू किया तो करीब 50 फीट अंदर भू-गर्भ में माता की मूर्ति विराजमान थी। बाद में पावई में इस प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्‍ठा कराई गई। खेरा यहां का बहुत ही प्रसिद्ध थान है, जहां सिद्ध आज भी रमुगलों ने वार किया तो माता ने कुएं में लगा दी छलांग पावई में काली माता के रूप में पूजा की जा रही भगवती के मंदिर में बताया जाता है कि एक बार मुगलों ने आक्रमण कर दिया था। औरंगजेब के द्वारा सभी हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमा को खंडित किया जा रहा था. पावई मंदिर में आज भी कई प्रतिमाओं के खंडित होने के प्रमाण मिलते हैं. मुगल जैसे ही मां की ओर बढ़े, मूर्ति गर्भगृह से छिटक कर कुएं में जा गिरी। मुगलों ने जब कुएं में प्रतिमा को निकालने के लिए जाल डाला, लेकिन मूर्ति नहीं निकली, तो गोताखोरों को उतारा गया किंतु वो मां की खोज नहीं कर सके। जब थक-हार कर मुगल वापस लौटे तब ग्रामीण कुएं में उतरे और मां प्रकट हो गईं. उसके बाद उन्‍हें कुएं वाली मां भी कहा गया. बताते हैं कि दोबारा मंदिर में मां की प्रतिमा को विधि-विधान के साथ स्‍थापित कराया गया था. इसके बाद मां की महिमा का डंका हर जगह बजने लगा था।


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