जिससे देखने के बाद लोगों में उत्सुकता बढ़ी और उन्होंने वीडियो बना लिए दरअसल पानी में पत्थर तैरना कोई नई बात नहीं है। पानी में पत्थर तैरने का जितना धार्मिक महत्व है उससे कहीं ज्यादा इसका वैज्ञानिक तथ्य भी है। साइंस कॉलेज के प्रोफेसर का कहना है कि अमूमन ज्वालामुखी के लावा से जो पत्थर बनते हैं वह पानी में आसानी से तैर जाते हैं। जिस पत्थर का घनत्व पानी से कम होता है वह पत्थर पानी में आसानी से तैर जाता है। ऐसे पत्थरों में बहुत सारे छेद होते हैं जिन्हें क्योमिक स्टोन भी कहा जाता है। नर्मदा नदी में पत्थरों का तैरने का कोई धार्मिक महत्व नहीं हो सकता। यह पत्थर या तो कोई शख्स वहां लेकर आया है या फिर किसी अन्य वैज्ञानिक कारण से पत्थर वहां पहुंच गए। वही जिलहरी घाट में रहने वाले नाविकों का भी कहना है कि कुछ लोग सुबह के वक्त अपने साथ पत्थर लेकर आए थे उन्होंने नर्मदा नदी में पत्थरों को डाला और कई घंटों तक पत्थरों से खेलते रहे और उसके बाद उन्हीं पत्थरों को अपने साथ ले गए। नर्मदा नदी में आज तक तैरने वाले पत्थरों को नहीं देखा गया है।
03 June 2023

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नर्मदा नदी में तैरते पत्थर को देखने लगी भीड़
नर्मदा नदी में तैरते पत्थर को देखने लगी भीड़
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MP24X7...यानी समय, सत्ता और समाज के बनाए हुए नियम के खिलाफ जाने का मतलब है। सही मायनों में सुधारवाद का वह पथ या रास्ता है। जो अंतिम माना जाता है, लेकिन हम इसे शुरुआत के रूप में ले रहे हैं। सार्थक शुरुआत कितनी कारगर साबित होगी? यह तो भविष्य तय करेगा। फिर भी हम ब्रह्मपथ पर चल पड़े हैं, क्योंकि यह अंतिम पथ नहीं है। सुधारवाद की दिशा में एक छोटा कदम है।.
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