Breaking

22 April 2023

सामाजिक संगठनों की चुनावी महत्वाकांक्षा जागने लगी


 भोपाल। मध्यप्रदेश में अब विधानसभा चुनाव करीब आते ही सामाजिक संगठनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी है। सामाजिक संगठनों ने राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए सियासी दलों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अलग अलग जातीय संगठन राजधानी में लाखों की भीड़ जुटाकर टिकट देने के लिए सियासी दलों पर दबाव बना रहे।

वोटों की चाह में नेता भी इन संगठनों के मंच पर मौजूदगी दर्ज कराने से नहीं चूक रहे। राजधानी भोपाल में दर्जनभर से ज्यादा जातीय संगठनों ने पिछले कुछ दिनों में हुंकार भरी है।
मप्र में जैसे जैसे चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, सत्ता में हिस्सेदारी का सपना संजोने वाले सामाजिक संगठनों की महत्वकांक्षाएं भी हिलौरे मारने लगी हैं। साल 2023 की शुरूआत से अब तक दर्जनभर से ज्यादा सामाजिक और जातीय संगठन राजधानी भोपाल में शक्तिप्रदर्शन कर हुंकार भर चुके हैं।
इन्होंने दिखाई ताकत
- 7 जनवरी भोपाल के जंबूरी मैदान में करणी सेना का तीन दिवसीय आंदोलन
- 10 फरवरी को आदिवासी सुरक्षा मंच ने भोपाल में 80 हज़ार आदिवासियों के साथ डी-लिस्टिंग रैली निकाली
- 11 फरवरी को भोपाल के गोविंदपुरा दशहरा मैदान में भीम आर्मी और पिछड़ा वर्ग कीअधिकार रैली...
प्रदेशभर से 10 हज़ार आदिवासी दलित शामिल...
प्रमोशन में आरक्षण और जातीय जनगणना की मांग....
- 31 मार्च को आरएसएस के बैनर तले सिंधु महासभा का महासम्मेलन...
दुनियाभर के 70 देशों से जुटे सिंधी समाज के लोग...
राजनीतिक संरक्षण और अधिकारों की मांग....
- 2 अप्रेल को साहू तैलिक समाज की भोपाल में हुंकार सभा...
प्रदेशभर से 50 हज़ार लोगों को जमा कर किया शक्तिप्रदर्शन
- 15 को भोपाल में ही यादव समाज की शक्ति प्रदर्शन की तैयारी... कांग्रेस के बैनर तले... प्रदेशभर से यादव जनप्रतिनिधि होंगे शामिल...
ज्यादा प्रतिनिधित्व की चाह

हाल ही में भोपाल में सिंधु और साहू तैलिक समाज भी भोपाल में बड़ा जमावड़ा कर अपनी शक्ति दिखा चुके हैं। इसके साथी कुशवाहा समाज भी राजनीति में प्रतिनिधित्व की बात करता नजर आ रहा है। अब 15 अप्रैल को कांग्रेस के बैनर तले यादव समाज भी सरपंच से लेकर विधायकों तक अपने तमाम जनप्रतिनिधियों का सम्मेलन करने की तैयारी में है। सभी जातियों प्रदेश में अपनी आबादी के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रही हैं।
जाति सत्ता पाने की सीढ़ी

चुनावी राजनीति में जाति सत्ता पाने की अहम सीढ़ी है। माना जाता है कि ज्यादातर समाज एक मुश्त वोट करते हैं, और यही वजह है कि यह जातीय और सामाजिक संगठन नेताओं और दलों की अहम मजबूरी भी है। यही वजह है कि समाजों के कार्यक्रमों में सीएम शिवराज से लेकर कमलनाथ तक दोनों की दलों के नेता बढ़कर हिस्सा लेते और वादे करते नज़र आते हैं।
सियासी दलों की मजबूरी
यूं तो जातिगत राजनीति
चुनावी पॉलीटिक्स का वो बदनुमा दाग है जो हर एक दल के दामन में करीने से सजाया गया है। अब इसे सियासी दलों की मजबूरी कहें... या चुनावी हथकंडा। लेकिन इतिहास गवाह है कि अब तक के चुनावों में इन जाति और समाजों ने ही राजनीतिक दलों और नेताओं को सर्वोच्चय सत्ता तक पहुंचाया है। अब देखना यह होगा। कि इस बार मप्र में कौन सी पार्टी इन्हें साधने में सफल होगा।

No comments:

Post a Comment

Pages