इस व्रत का महत्व करवा चौथ जैसा ही होता है। आपको बता दे कि शुक्रवार को सुबह से ही वट वृक्ष की पूजा करने को लेकर महिलाएं पहुची और बड़े ही श्रद्धा भाव से पूजा की इस पूजन में बरगद की पूजा की जाती है। इस व्रत को गाँव की भाषा में बरगदाही पूजा भी कहते हैं। महिलाएं ये व्रत अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं इस व्रत में उपवास रखा जाता है । मान्यता है यह व्रत सावित्री द्वारा अपने पति को पुनः जीवित करने की याद के रुप में रखा जाता है। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। इस पूजा को प्रातः काल स्नान आदि के बाद बांस की टोकरी में सप्तधन रखकर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापना कर फ़िर सावित्री की मूर्ति स्थापना करते हैं और दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरी को वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्मा तथा सावित्री के पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करके बरगद की जड़ में जल देते हैं । पूजा में जल, मौली, कच्चा सूत, भीगा चना ,फल,फूल तथा धूप से पूजन करते हैं। वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत लपेटकर 108 परिक्रमा का विधान है।
19 May 2023

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पति की लंबी उम्र के लिए सुहागनों ने रखा व्रत
पति की लंबी उम्र के लिए सुहागनों ने रखा व्रत
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MP24X7...यानी समय, सत्ता और समाज के बनाए हुए नियम के खिलाफ जाने का मतलब है। सही मायनों में सुधारवाद का वह पथ या रास्ता है। जो अंतिम माना जाता है, लेकिन हम इसे शुरुआत के रूप में ले रहे हैं। सार्थक शुरुआत कितनी कारगर साबित होगी? यह तो भविष्य तय करेगा। फिर भी हम ब्रह्मपथ पर चल पड़े हैं, क्योंकि यह अंतिम पथ नहीं है। सुधारवाद की दिशा में एक छोटा कदम है।.
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