इस याचिका में क्षिप्रा में घटों के जल के सेम्पल लिये गये जिससे अधीकाष घाट के सेम्पल क् केटेगरी के आये है अर्थात क्षिप्रा का जल पीने योग्य नही हेै साफ सफाई हेतु ही उपयोग किया जा सकता है। इस याचिका में क्षिप्रा में मिलने वाले केडी पेलेस के नाले से लाल रंग का पानी निकल रहा है जो ज K D पेलेस उज्जैन लेकर महिपुर तहसील के अंतिम गाँव तक जा रहा है इस पानी का उपयोग 70 किलों मीटर के क्षेत्र में 250 गांव उससे खेती की सिचाई कि लियें कर रहे है जिससे गांव में बिमारियाॅं पनप रही है हाथ पैरों में दर्द रहता है, फसलें जल रही (आलू, प्याज, गेंहू) है।
1- याचिका ने 28 पक्षकार है, जिसमें 4 कलेक्टर, 5 नगर निगम/पंचायत, 4 उद्योग, 3 केन्द्र व 12 राज्य व केन्द्र शासन के विभाग सम्मिलित है। याचिका नंबर 25/2023 है। याचिकाकर्ता सचिन दवे है। याचिका सेन्ट्रल झोन फरवरी 2023 में लगायी गई।
2- अध्ययन यात्रा मार्च 2022 से लेकर जून एवं नवम्बर व दिसम्बर 2022 दोनों मौसम गर्मी एवं ठण्डो में की गई है।
3- यात्रा में 4 जिले, 22 स्थान, 20 शोध छात्र को जोड़ा लगभग 1200 ग्रामीणों से चर्चा की गई, 13 प्रमुख कारण क्षिप्रा प्रदूषण के अध्ययन के दौरान ध्यान में आए।
4- इन्दौर कान्य नदी का पानी एवं देवास से उद्योंगों का पानी भी क्षिप्रा में मिल रहा है, केवल कुछ ही घाटो पर मछलियाॅं मिल रही है।
5- क्षिप्रा के उदगम से संगम तक क्षिप्रा अध्ययन यात्रा में यह पाया गया कि क्षिप्रा नदी अनेक स्थानों पर नाले के रूप में परिवर्तित हो गई है। उद्गम से अरनिया कुण्ड तक तो नदी का स्वरूप ही नही दिखता है।
6- क्षिप्रा के उदगम से 7 किलो मीटर बाद क्षिप्रा का अस्तित्व दिखता है अनेक स्थानों पर पानी नहीं मिलता है नर्मदा लिंक से जो पानी क्षिप्रा में जाता है वो ठीक प्रकार से क्षिप्रा में नहीं छोडा जा रहा है यह अध्ययन का विषय हो सकता हैं।
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